मंगलकारी देव गणेश
" वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ "
निराकार ब्रह्म शिवजी के पंचतत्व ओर तत्व देवता ही प्रधान स्वरूप है । भगवान सूर्यदेव प्रत्यक्ष देवता है और नित्य सुबह दुपहर शाम तीनो संध्या में उनको अर्घ्य अर्पण करके प्रत्यक्ष पूजा होती है या अग्निहोत्री साधक नित्य यज्ञ द्वारा प्रत्यक्ष पूजा करते है इसलिए उनके स्वतंत्र मंदिर की आवश्यकता नही इनके मंदिर बहोत कम नजर आते है । ऐसे ही भगवान गणेश जो धन , धान्य , सुख , संपति , संतति , परिवार सुख प्रदान करनेवाले देव है जो जीवमात्र केलिये अत्यंत आवश्यक है । इसलिए ईश्वर द्वारा मनुष्य देहमे रक्तमे रक्तकण के स्वरूपमे ही स्थापित कर दिये है । इस सूक्ष्म विज्ञान को ही ऋषि परमपरांए गोत्र ओर गोत्र देवता परंपरा स्थापित कर दी है । जो विश्वके हरेक परिवारमें सतयुग से आजतक ये उपासना पद्धति कायम है । समाज के हरेक व्यक्ति के घर के पूजा स्थानमे गणपति स्थापना ओर उनकी पूजा प्रथम ही होती है । इसलिए उनके भी स्वतंत्र मंदिर बहोत कम देखने मिलते है । पर गणेशजी की उच्च साधना करने वाले साधकोंने विश्वमे अनेक स्थानों पर उनके मंदिर स्थापित किये है । आज के समयमे कंही स्थानों देशमे कोई हिन्दू सनातनी नही होने से ऐसे कही मंदिर स्थान नष्ट हो गए और कही प्रजा उन्हें उनकी भाषामे अलग अलग नाम से पूजती है इसलिए बाकि लोग नही जानते ।
इस पृथ्वीलोक के प्रधान देवता श्री गणपतिजी नवखंड धरती के हरेक स्थल पर पूर्ण जागृत देव है । हरेक प्रकार की सिद्धि सफलता उनकी प्रसन्नता से ही मिलती है। सतयुग से लेकर आजतक ब्रह्मा विष्णु महेश इन्द्रादिक देवी देवता सह अनेक ऋषिमुनियो ओर भक्तोंने उनकी उपासना पूजन किये ऐसे अनेक स्थान है । समय , बदलाव , ओर नवसर्जन की प्रक्रिया में बहोत स्थान गोपनीय बन गए या अलग भाषा के अलग नाम से प्रसिद्ध होने के कारण हमें ज्ञात नही है । फिरभी जहा नित्य पूजा अर्चना हो रहा वो स्थान आज तीर्थ स्वरूप है ।
पंचदेवों में से एक भगवान गणेश सर्वदा ही अग्रपूजा के अधिकारी हैं और उनके पूजन से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है. श्रीगणेश के स्वतंत्र मंदिर कम ही जगहों पर देखने को मिलते हैं, परंतु सभी मंदिरों, घरों, दुकानों आदि में भगवान गणेश विराजमान रहते हैं. इन जगहों पर भगवान गणेश की प्रतिमा, चित्रपट या अन्य कोई प्रतीक अवश्य रखा मिलेगा. लेकिन कई स्थानों पर भगवान गणेश की स्वतंत्र मंदिर भी स्थापित है और उसकी महता भी अधिक बतायी जाती है. भारत ही नहीं भारत के बाहर भी भगवान गणेश पुजे जाते हैं. वहां किसी ना किसी रूप में भगवान गणेश की उपासना प्रचलित है.
1. मोरेश्वर : गणपति तीर्थों में यह सर्वप्रधान है. यहां मयुरेश गणेश भगवान की मूर्ति सथापित है. यह क्षेत्र पुणे से 40 मील और जेजूरी स्टेशन से 10 मील की दूरी पर अवस्थित है.
2. प्रयाग : यह प्रसिद्ध तीर्थ उत्तर प्रदेश में है. यह 'ओंकार गणपति क्षेत्र' है. यहां आदिकल्प के आरंभ में ओंकार ने वेदों सहित मूर्तिमान होकर भगवान गणेश की आराधना और स्थापना की थी.
3. काशी : यहां ढुण्ढिराज गणेशजी का मंदिर है. यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है और यह 'ढुण्ढिराज क्षेत्र' है. यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी में है.
4. कलम्ब : यह 'चिंतामणि क्षेत्र' है. महर्षि गौतम के श्राप से छूटने के लिए देवराज इंद्र ने यहां 'चिंतामणि गणेश' की स्थापना कर पूजा की थी. इस स्थान का नाम कदंबपुर है. बरार के यवतमाल नगर से यहां मोटर बस आदि से जाया जा सकता है.
5. अदोष : नागपुर-छिदवाड़ा रेलवे लाइन पर सामनेर स्टेशन है. वहां से लगभग 5 मील की दूरी पर यह स्थल है. इसे 'शमी विघ्नेश क्षेत्र कहा जाता है. महापाप, संकट और शत्रु नामक दैत्यों के संहार के लिए देवता तथा ऋषियों ने यहां तपस्या की थी. उनके द्वारा ही भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गयी है. कहा जाता है कि महाराज बलि के यज्ञ में जाने से पूर्व वामन भगवान ने भी यहां पूजा की थी.
6. पाली : इस स्थान का प्राचीन नाम पल्लीपुर है, बल्लाल नामक वैश्य बालक की भक्ति से यहां गणेशजी का आविर्भाव हुआ, इसलिए इसे 'बल्लाल विनायक क्षेत्र' कहा जाता है. यह मूल क्षेत्र सिंधु में वर्णित है लेकिन वर्त्तमान में महाराष्ट्र कुलाबा जिले के पाली में इस क्षेत्र को माना जाता है.
7. पारिनेर : यह 'मंगलमूर्ति क्षेत्र' है. मंगल ग्रह ने यहां तपस्या करके गणेश जी की आराधना की थी. ग्रंथों में यह क्षेत्र नर्मदा के किनारे बताया गया है,
8. गंगा मसले : यह 'भालचंद्र गणेश क्षेत्र' है. चंद्रमा ने यहां भगवान गणेशजी की आराधना की थी. काचीगुडामनमाड रेलवे लाइन पर परभनी से छब्बीस मील दूर सैलू स्टेशन है. वहां से पंद्रह मील की दूरी पर गोदावरी के मध्य में श्रीभालचंद्र गणेश का मंदिर है.
9. राक्षसभुवन : जालना से 33 मील की दूरी पर गोदावरी के किनारे यह स्थान है. यह 'विज्ञान गणेश क्षेत्र' है. गुरु दत्तात्रेय ने यहां तपस्या की और विज्ञान गणेश की स्थापना की. यहां मंदिर भी विज्ञान गणेश का है.
10. थेऊर : पुणे से 5 मील की दूरी पर यह स्थान है. ब्रह्माजी ने सृष्टि कार्य में आने वाले विघ्नों के नाश के लिए गणेशजी की यहां स्थापना की थी.
11. सिद्धटेक : बंबई-रायचूर लाइन पर घौंड जंक्शन से 6 मील की दूरी पर बोरीवली स्टेशन है. वहां से लगभग 6 मील की दूरी पर भीमा नदी के किनारे यह स्थान है. इसका प्राचीन नाम 'सिद्धाश्रम' है. यहां भगवान विष्णु से मधु कैटभ दैत्यों को मारने के लिए गणेशजी का पूजन किया था. यहां भगवान विष्णु द्वारा स्थापित गणेशजी की प्रतिमा है.
12. राजनगांव : इसे 'मणिपुर क्षेत्र' कहते हैं. भगवान शंकर त्रिपुरासुर के साथ युद्ध करने से पहले यहां गणेशजी की पूजा की थी. यहां गणेश स्तवन करने के बाद उन्होंने त्रिपुरासुर को हराया था. शिवजी द्वारा स्थापित गणेशजी की मूर्ति यहां है. पुणे से राजनगांव के लिए सड़क मार्ग है.
13. विजयपुर : अनलासुर के नाशार्थ यहां गणेशजी का अविर्भाव हुआ था. ग्रंथों में यह क्षेत्र तैलंगदेश में बताया गया है. स्थान का पता नहीं है. मद्रास-मैंगलोर लाइन पर ईरोड से 16 महल की दूरी पर विजयमंगलम स्टेशन है. वहां का गणपति मंदिर प्रख्यात है.
14. कश्यपाश्रम : यहां पर महर्षि कश्यपजी ने अपने आश्रम में गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा की थी.
15 जलेशपुर : मय दानव द्वारा निर्मित त्रिपुर के असुरों ने इस स्थान पर गणेश जी की स्थापना कर पूजन किया था.
16. लोह्याद्रि : पुणे जिले में जूअर तालुका है. वहां से लगभग 5 मील की दूरी पर यह स्थान है. पार्वतीजी ने यहां गणेशजी को पुत्र के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी.
17. बेरोल : इसका प्राचीन नाम एलापुर क्षेत्र है. महाराष्ट्र के औरंगाबाद से बेरोल के लिए सड़क मार्ग है. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भी यहीं है. तारकासुर के वध के बाद भगवान शंकर ने यहां गणेशजी की स्थापना कर उनकी पूजा की थी. यहां स्कंदमाता ने मूर्ति स्थापित की थी और उसका नाम 'लक्ष विनायक' है.
18. पद्मालय : यह प्राचीन प्रवाल क्षेत्र है. बंबई-भुसावल रेलवे लाइन पर पचोरा जंक्शन से 16 मील की दूरी पर महसावद स्टेशन है. वहां से लगभग 5 मील की दूरी पर यह तीर्थ है. यहां सहस्त्रार्जुन और शेषजी ने गणेशजी की पूजा की थी. दोनों की ओर से स्थापित दो गणपति मूर्तियां यहां है.
19. नामलगांव : काचीगुड़ा-मनमाड लाइन पर जालना स्टेशन है. जालना से सड़क मार्ग से घोसापुरी गांव जाया जा सकता है. गांव से पैदल नामलगांव जाना पड़ता है. यह प्राचीन 'अमलाश्रम क्षेत्र' है. यम धर्मराज ने अपनी माता की शाप से मुक्ति के लिए यहां गणेशजी की स्थापना कर पूजा की थी. यहां की प्रतिमा भी यमराज ने ही स्थापित की है. यहां 'सुबुद्धिप्रद तीर्थ' भी है.
20. राजूर : जालना स्टेशन से यह स्थान 14 मील दूर है. इसे 'राजसदन क्षेत्र' भी कहते हैं. सिंदूरासुर का वध करने के बाद गणेशजी ने राजा वरेण्य को 'गणेश गीता' का ज्ञान दिया था.
21. कुम्भकोणम् : यह दक्षिण भारत का प्रसिद्ध तीर्थ है. इसे 'श्वेत विघ्नेश्वर क्षेत्र' भी कहते हैं. यहां कावेरी पर सुधा-गणेशजी की मूर्ति है. समुद्र मंथन के समय पर्याप्त श्रम के बाद भी अमृत नहीं निकला तक देवताओं ने यहां गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की थी.
ओर ऐसे भी अनेक स्थान है जहाँ तंत्र मार्ग से पूजा की जाती है और उनकी उपासना भी गोपनीय रखी जाती है और ज्यादातर गाढ़ जंगलों और पहाडियो के बीच है । गोपनीयता के कारण उस स्थान यहां नही बताये जाते।
* लम्बोदर चतुर्वर्ण हैं। सर्वत्र पूजनीय श्री गणेश सिंदूर वर्ण के हैं। इनका स्वरूप भक्तों को सभी प्रकार के शुभ व मंगल फल प्रदान करने वाला है।
* नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है।
* शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए।
* शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रा गणपति की आराधना की जाती है।
( 1 )गणपति जी का बीज मंत्र 'गं' है।
इनसे युक्त मंत्र-
'ॐ गं गणपतये नमः'
का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
( 2 )षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धिप्रदायक है।
।ॐ वक्रतुंडाय हुम्।
,( 3 ) किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुंह में गुड़, लौंग, इलायची, बताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है
उच्छिष्ट गणपति का मंत्र
।।ॐ हस्ति पिशाचिनी लिखे स्वाहा।।
( 4 ) आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें -
गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:
,( 5 ) विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपें -
'ॐ गं नमः'
( 6 ) रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप करें-
ॐ श्रीं सौम्याय सौभाग्याय गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानाय स्वाहा।
( 7 )विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है-
"ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानाय स्वाहा। "
इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है।
आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र:
कामेंट्स
घनश्याम बंसल May 21, 2022
जय श्री राम
Subhash Chander May 21, 2022
kisi note par Prabhu ji ki photo nahi honi chahie kayoki Log note nach gane me lutate h note kadmo vich rulde Han Jai Shree Ram
Gajendrasingh kaviya May 21, 2022
radhe radhe good evening my sweet sis 🌹🌷🌹🌹 aap sada khush raho my pyari bena 🌹🌹🌹🌹 happy weekend 🌹🌹🌹🌹
RAJENDRA LODHA May 21, 2022
JAI SHREE SITA RAM RAM JI JAI SHREE HANUMAN JI JAI SHREE RADHE RADHE KRISHNA JI JAI 🙏
Jaibhagwan May 21, 2022
jai shree Ram
madhu bala May 21, 2022
shayad aap sb bhul gye ho ki is paise ka istemaal hum kb kaha or kese krte h or ha kitne log to muh mein ungli laga ne ke baad rupay ko ginte h to ram ji ko photo kabhi bhi rupay pr nhi honi chahiye 🙏🙏
Ranveer Soni May 21, 2022
🌹🌹जय श्री राम🌹🌹🙏🙏