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ॐ आध्यात्मिक दर्शन ॐ श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरे: ! विस्मयो मे महान् राजन्ह्रष्यामि च पुनः पुनः!! 77 !! हे राजन्! श्रीहरिके उस अत्यन्त विलक्षण रूप ( जिसका स्मरण करने से पापों का नाश होता है, उसका नाम 'हरि' है) को भी पुनः - पुनः स्मरण करके मेरे चित्त में महान आश्चर्य होता है और मैं बार- बार हर्षित हो रहा हूँ!! 77!! धन्यवाद जी शिवचरण परमार भुलवाना श्रीराधे जय श्री राधे राधे जी
ॐ आध्यात्मिक दर्शन ॐ श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 ॐ राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्! केशवार्जुनयो: पुण्यं ह्रष्यामि च मुहुर्मुहु : !! 76 !! हे राजन्! भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनके इस रहस्ययुक्त, कल्याणकारक और अदभुत संवादको पुनः- पुनः स्मरण करके मैं बार- बार बार हर्षित हो रहा हूँ!! 76 !! धन्यवाद जी शिवचरण परमार भुलवाना श्रीराधे जय श्री राधे राधे जी
ॐ आध्यात्मिक दर्शन ॐ श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 ॐ व्यासप्रसादाच्छु्तवानेतदु्ह्यमहं परम्! योगं योगेश्वरात्कृष्णात् साक्षात्कथयत: स्वयम्!! 75 !! श्रीव्यासजीकी कृपा से दिव्य दृष्टि पाकर मैंने इस परम गोपनीय योगको अर्जुन के प्रति कहते हुए स्वयं योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण से प्रत्यक्ष सुना !! 75 !! धन्यवाद जी शिवचरण परमार भुलवाना श्रीराधे जय श्री राधे राधे जी